असमः कैसे हुआ बीजेपी का अपार विस्तार और क्या अब NRC-CAB से हिलेंगी जड़ें?
हवा से भेजा ये एसएमएस उस नेता का है, जिन्हें वो राज़ और काज दोनों मालूम हैं जिससे असम और उत्तर पूर्व में बीजेपी के सियासी झंडे गड़ पाए. 'बीबीसी कहां है, बीबीसी?' जी हम ही हैं बीबीसी से, बैठिए इंटरव्यू के लिए कैमरा सेटअप तैयार है. हमारी ये बात सुनते ही गुवाहाटी बीजेपी दफ़्तर से तेजी से निकले ये वो नेता हैं, जिनकी वजह से भी असम में बीजेपी पहली बार सत्ता तक पहुंच पाई. ये दो नेता हैं बीजेपी महासचिव सुनील देवधर और असम सरकार में नंबर-2 हेमंत बिस्वा सरमा. एक हिंदी भाषी पार्टी मानी जाने वाली बीजेपी असम में कैसे सफल हुई? इस सवाल का जवाब इन नेताओं से जानने की कोशिश में हमें मिली ये पहली प्रतिक्रियाएं अपने आप में एक जवाब है. ज़ाहिर है कि ये जवाब तनिक धुंधला लग सकता है. लिहाज़ा स्पष्ट जवाब के लिए आपको असम की ब्रह्मपुत्र और बराक वैली की सैर पर लिए चलते हैं. दशकों से बाहरियों के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ने वाले असम ने बीजेपी के आने के बाद एनआरसी प्रक्रिया को अंतिम चरण में जाते हुए भी देखा है और नागरिकता संशोधन बिल से बढ़ते ख़ौफ़ को भी. क्या इस ख़ौफ़ के बढ़ने से बीजेपी की मज़बूत जड़