अकबर की तरफ से दलील- 40 साल में बनी छवि को महिलाओं के ट्वीट नुकसान पहुंचा रहे
नई दिल्ली. यौन शोषण के आरोपों से घिरे एमजे अकबर की तरफ से दायर मानहानि मुकदमे पर गुरुवार को दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट में सुनवाई हुई। पत्रकार प्रिया रमानी ने 8 अक्टूबर को अकबर के बारे में एक ट्वीट किया था। इसके बाद अब तक 16 महिला पत्रकार अकबर के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोप लगा चुकी हैं। 20 महिलाएं उनके खिलाफ गवाही को तैयार हैं। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि 31 अक्टूबर को अकबर और बाकी गवाहों के बयान सुने जाएंगे।
अकबर की तरफ से पैरवी कर रहीं वकील गीता लूथरा ने कहा कि अकबर की 40 साल में तैयार हुई छवि को ऐसा नुकसान पहुंचाया जा रहा है, जिसकी भरपाई नहीं हो सकती। लूथरा ने कहा कि रमानी ने अकबर की छवि को नुकसान पहुंचाने वाले ट्वीट किए। दूसरा ट्वीट तो स्पष्टत: उनके खिलाफ था, जिसे 1200 लोगों ने लाइक किया। इन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने अपने लेखों में इस्तेमाल किया। ये ट्वीट तब तक प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने वाले हैं, जब तक कि रमानी कुछ साबित नहीं कर देतीं। इस दौरान लूथरा ने बाकी महिलाओं के ट्वीट्स का हवाला भी दिया।
प्रिया रमानी का 8 अक्टूबर का पहला ट्वीट
इससे पहले बुधवार को केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री पद से इस्तीफा दिया था। अकबर रविवार को नाइजीरिया दौरे से लौटे थे, तब से इस्तीफा देने तक 72 घंटे में वे चार केंद्रीय मंत्रियों- अरुण जेटली, नितिन गडकरी, सुषमा स्वराज और राजनाथ सिंह से मिले थे। बुधवार सुबह राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल से उनकी मीटिंग हुई। कहा जा रहा है एनएसए से बातचीत में ही मंत्री पद छोड़ना तय हुआ।
सरकार को बदनामी का डर था : भास्कर को सूत्रों ने बताया कि अकबर को हटाने को लेकर वरिष्ठ मंत्रियों ने 12 अक्टूबर को बैठक की थी। इसमें तय हुआ कि उन्हें अचानक हटाने से सरकार की बदनामी होगी। इसलिए फिलहाल चुप्पी बनाए रखना ही सही होगा। यही वजह रही कि विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और मेनका गांधी ने इस मुद्दे पर किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया।
निजी हैसियत से लड़ाई लड़ेंगे अकबर : सरकार चाहती थी कि अकबर को आरोपों के खिलाफ कानूनी लड़ाई में निजी हैसियत से शामिल होना चाहिए, न कि केंद्रीय मंत्री की हैसियत से। ऐसा होता तो हर सुनवाई पर सरकार को बदनामी झेलनी पड़ती। इसलिए मानहानि मामले की सुनवाई से ठीक एक दिन पहले उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। इसी के तहत अकबर ने भी इस्तीफे में इस बात का जिक्र किया है कि वे कानूनी लड़ाई निजी हैसियत से लड़ेंगे।
'झूठे आरोपों के खिलाफ लड़ूंगा' : अकबर ने इस्तीफे के बाद बयान दिया, ''मैं अदालत में न्याय के लिए गया हूं। ऐसे में मेरा पद से इस्तीफा दे देना उचित है। मैं इन झूठे आरोपों के खिलाफ लड़ाई लड़ूंगा।'' उधर, प्रिया रमानी ने ट्वीट किया, ''अकबर के इस्तीफे के बाद हम सही साबित हो रहे हैं। अब उस दिन का इंतजार है, जब हमें अदालत में न्याय मिलेगा।''
कौन हैं अकबर : अकबर ने 1971 में टाइम्स ऑफ इंडिया से ट्रेनी के तौर पर पत्रकारिता करियर की शुरुआत की। वे कई बड़े पत्रकारिता संस्थानों में काम कर चुके हैं। उन्होंने राजनीतिक करियर कांग्रेस से शुरू किया। 1989 से 1991 के बीच कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा भेजा था। वे पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के प्रवक्ता भी रह चुके हैं। 2014 में वे भाजपा में शामिल हुए थे।
विदेश मंत्रालय में यौन शोषण की शिकायतें सबसे ज्यादा : एमजे अकबर जिस मंत्रालय में दो साल तक राज्य मंत्री रहे, उसमें यौन शौषण की शिकायतें सबसे ज्यादा दर्ज की गईं। 18 मंत्रालयों में 36 शिकायतें दर्ज हुईं। इनमें सबसे ज्यादा 36% यानी 13 शिकायतें सिर्फ विदेश मंत्रालय में थीं। यौन शोषण के सबसे ज्यादा सात केस लंबित भी यहीं थे। ये जानकारी आरटीआई के तहत हासिल हुई है।
अकबर की तरफ से पैरवी कर रहीं वकील गीता लूथरा ने कहा कि अकबर की 40 साल में तैयार हुई छवि को ऐसा नुकसान पहुंचाया जा रहा है, जिसकी भरपाई नहीं हो सकती। लूथरा ने कहा कि रमानी ने अकबर की छवि को नुकसान पहुंचाने वाले ट्वीट किए। दूसरा ट्वीट तो स्पष्टत: उनके खिलाफ था, जिसे 1200 लोगों ने लाइक किया। इन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने अपने लेखों में इस्तेमाल किया। ये ट्वीट तब तक प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने वाले हैं, जब तक कि रमानी कुछ साबित नहीं कर देतीं। इस दौरान लूथरा ने बाकी महिलाओं के ट्वीट्स का हवाला भी दिया।
प्रिया रमानी का 8 अक्टूबर का पहला ट्वीट
इससे पहले बुधवार को केंद्रीय विदेश राज्य मंत्री पद से इस्तीफा दिया था। अकबर रविवार को नाइजीरिया दौरे से लौटे थे, तब से इस्तीफा देने तक 72 घंटे में वे चार केंद्रीय मंत्रियों- अरुण जेटली, नितिन गडकरी, सुषमा स्वराज और राजनाथ सिंह से मिले थे। बुधवार सुबह राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत डोभाल से उनकी मीटिंग हुई। कहा जा रहा है एनएसए से बातचीत में ही मंत्री पद छोड़ना तय हुआ।
सरकार को बदनामी का डर था : भास्कर को सूत्रों ने बताया कि अकबर को हटाने को लेकर वरिष्ठ मंत्रियों ने 12 अक्टूबर को बैठक की थी। इसमें तय हुआ कि उन्हें अचानक हटाने से सरकार की बदनामी होगी। इसलिए फिलहाल चुप्पी बनाए रखना ही सही होगा। यही वजह रही कि विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और मेनका गांधी ने इस मुद्दे पर किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया।
निजी हैसियत से लड़ाई लड़ेंगे अकबर : सरकार चाहती थी कि अकबर को आरोपों के खिलाफ कानूनी लड़ाई में निजी हैसियत से शामिल होना चाहिए, न कि केंद्रीय मंत्री की हैसियत से। ऐसा होता तो हर सुनवाई पर सरकार को बदनामी झेलनी पड़ती। इसलिए मानहानि मामले की सुनवाई से ठीक एक दिन पहले उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। इसी के तहत अकबर ने भी इस्तीफे में इस बात का जिक्र किया है कि वे कानूनी लड़ाई निजी हैसियत से लड़ेंगे।
'झूठे आरोपों के खिलाफ लड़ूंगा' : अकबर ने इस्तीफे के बाद बयान दिया, ''मैं अदालत में न्याय के लिए गया हूं। ऐसे में मेरा पद से इस्तीफा दे देना उचित है। मैं इन झूठे आरोपों के खिलाफ लड़ाई लड़ूंगा।'' उधर, प्रिया रमानी ने ट्वीट किया, ''अकबर के इस्तीफे के बाद हम सही साबित हो रहे हैं। अब उस दिन का इंतजार है, जब हमें अदालत में न्याय मिलेगा।''
कौन हैं अकबर : अकबर ने 1971 में टाइम्स ऑफ इंडिया से ट्रेनी के तौर पर पत्रकारिता करियर की शुरुआत की। वे कई बड़े पत्रकारिता संस्थानों में काम कर चुके हैं। उन्होंने राजनीतिक करियर कांग्रेस से शुरू किया। 1989 से 1991 के बीच कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा भेजा था। वे पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के प्रवक्ता भी रह चुके हैं। 2014 में वे भाजपा में शामिल हुए थे।
विदेश मंत्रालय में यौन शोषण की शिकायतें सबसे ज्यादा : एमजे अकबर जिस मंत्रालय में दो साल तक राज्य मंत्री रहे, उसमें यौन शौषण की शिकायतें सबसे ज्यादा दर्ज की गईं। 18 मंत्रालयों में 36 शिकायतें दर्ज हुईं। इनमें सबसे ज्यादा 36% यानी 13 शिकायतें सिर्फ विदेश मंत्रालय में थीं। यौन शोषण के सबसे ज्यादा सात केस लंबित भी यहीं थे। ये जानकारी आरटीआई के तहत हासिल हुई है।
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