नेशनल वॉर मेमोरियल से जुड़ी ये ख़ास बातें
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नई दिल्ली में नेशनल वॉर मेमोरियल का उद्घाटन करते हुए कांग्रेस और गांधी परिवार पर निशाना साधना नहीं चूके.
उन्होंने इस मौके पर ये कहा है कि कांग्रेस और गांधी परिवार ने कभी सेना की परवाह नहीं की. उन्होंने ये भी कहा कि देश को सोचना होगा कि देश पहले है या परिवार पहले?
हम आपको इस मौके पर बताते हैं नेशनल वार मेमोरियल की ख़ास बातों के बारे में-
नेशनल वॉर मेमोरियल को नई दिल्ली के इंडिया गेट परिसर में बनाया गया है. यह विभिन्न युद्धों में मारे गए भारतीय सैनिकों की याद में बनाया गया है.
अमर जवान ज्योति के पास 40 एकड़ में फैले इस वॉर मेमोरियल को 176 करोड़ रुपये की लागत से बनाया गया है.
नेशनल वॉर मेमोरियल में अमर जवान ज्योति की तरह ही हर वक्त ज्योति चलती रहेगी.
इसमें 1962 के बाद से अब तक विभिन्न युद्धों में मारे गए 25,942 सैनिकों के नाम दर्ज हैं. इनके नाम मेमोरियल परिसर की 16 दीवारों पर दर्ज किए गए हैं.
इसे महाभारत के चक्रव्यूह के अंदाज़ में चार चक्र में बनाया गया है- अमर चक्र, वीरता चक्र, त्याग चक्र और रक्षक चक्र.
इसके अलावा इस मेमोरियल में राम सुतार के बनाए तांबे की छह म्युरल भी बनाए गए हैं.
स्नेह 15 साल की थी, जब पहली बार उनका सामना माहवारी से हुआ था. उन्हें उस वक़्त समझ नहीं आया कि उनके साथ क्या हो रहा है.
जब मैं उनसे मिलने उनके गांव काठीखेड़ा पहुंची तो उन्होंने मुझे बताया, "मैं बहुत डरी हुई थी. मुझे लगा कि मैं कुछ गंभीर बीमारी की शिकार हो गई हूं और रोने लगी."
"मुझे अपनी मां को बताने की हिम्मत नहीं थी इसलिए मैंने अपनी चाची से बात की. उन्होंने कहाः तुम अब बड़ी हो गई हो, रोओ मत, यह सामान्य बात है. उन्होंने ही इस बारे में मेरी मां बताया."
स्नेह अब 22 साल की हैं और उन्होंने एक लंबा सफर तय किया है. वह अपने गांव की एक छोटी फैक्ट्री में काम करती हैं, जहां सैनेटरी पैड बनाया जाता है और वह अब नायिका बन चुकी हैं.
पीरियडः एंड ऑफ सेन्टेन्स, एक डॉक्यूमेंट्री है, जिसे ऑस्कर में बेस्ट डॉक्यूमेंट्री शॉर्ट सब्जेक्ट कैटेगरी में अवॉर्ड मिला है.
वो फिलहाल ऑस्कर समारोह में हिस्सा लेने लॉस एंजिल्स गई हैं.
ईरानी अमरीकी फ़िल्म निर्माता रायका ज़ेहताब्ज़ी ने यह फ़िल्म तब बनाई जब उत्तरी हॉलीवुड के कुछ छात्रों के एक समूह ने क्राउडफंडिग कर पैड बनाने वाली मशीन स्नेह के गांव से मंगवाई.
दिल्ली से महज 115 किलोमीटर दूर हापुड़ ज़िले का काठीखेड़ा गांव एक ऐसी जगह है जहां शहरी विकास आज भी नहीं पहुंचा है. वहां चकाचौंध बाजार और मॉल देखने को नहीं मिलेंगे.
आम तौर पर यहां दिल्ली से ढाई घंटे की यात्रा के बाद पहुंचा जा सकता है, हालांकि सड़कों की स्थिति ठीक नहीं होने की वजह से यात्रा थोड़ी लंबी हो जाती है.
हापुड़ जिला मुख्यालय से स्नेह का गांव करीब साढ़े सात किलोमीटर भीतर है.
डॉक्यूमेंट्री की शूटिंग खेत-खलिहानों में की गई है. देश के अन्य इलाक़ों की तरह यहां भी माहवारी पर खुल कर बात नहीं करने की परंपरा है.
माहवारी के दौरान महिलाओं को अशुद्ध समझा जाता है और उसे समाजिक आयोजनों से बाहर कर दिया जाता है.
भारतीय समाज में इस मुद्दे पर बात नहीं होने की वजह से स्नेह को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा था. पहली बार माहवारी होने से पहले स्नेह ने इसके बारे में कभी नहीं सुना था.
स्नेह कहती हैं, "यह एक ऐसा विषय था, जिस पर लड़कियों के बीच भी चर्चा नहीं होती थी."
लेकिन चीजें तब बदलने लगीं जब एक्शन इंडिया नाम के एक संस्थान ने महिला स्वास्थ्य के मुद्दों पर काम करना शुरू किया. संस्थान ने काठीखेड़ा में सैनेटरी पैड बनाने के लिए एक छोटी फैक्ट्री भी लगाई.
जनवरी 2017 में एक्शन इंडिया में काम करने वाली स्नेह की पड़ोसी सुमन ने उनसे पूछा कि क्या वो पैड बनाने वाली फैक्ट्री में काम करना चाहेंगी.
स्नेह ने उत्साहित होकर हां में जवाब दिया. ग्रेजुएशन कर चुकी स्नेह दिल्ली पुलिस में नौकरी का सपना देखती हैं. हालांकि गांव में जॉब के मौके कम होने की वजह से उन्होंने एक्शन इंडिया ज्वाइन करने का फ़ैसला किया.
वो अपने पिता को यह बताने में शर्मिंदगी महसूस कर रही थीं कि वो सैनेटरी पैड बनाने जा रही हैं, इसलिए उन्होंने उनसे कहा कि वो बच्चों को डायपर बनाएंगी.
स्नेह हंसते हुए कहती हैं, "नौकरी के दो महीने बाद मेरी मां ने पापा को बताया कि मैं पैड बना रही थी."
उन्हें उस वक़्त राहत महसूस हुई जब उनके पिता ने यह सुन कर कहा, "ठीक है, काम तो काम होता है."
आज इस छोटी फैक्ट्री में सात महिलाएं काम करती हैं. इनकी उम्र 18 से 31 साल तक है. सप्ताह में छह दिन सुबह नौ बजे से शाम पांच बजे तक काम करने के इन्हें 2500 रुपए प्रति महीना मिलता है.
उन्होंने इस मौके पर ये कहा है कि कांग्रेस और गांधी परिवार ने कभी सेना की परवाह नहीं की. उन्होंने ये भी कहा कि देश को सोचना होगा कि देश पहले है या परिवार पहले?
हम आपको इस मौके पर बताते हैं नेशनल वार मेमोरियल की ख़ास बातों के बारे में-
नेशनल वॉर मेमोरियल को नई दिल्ली के इंडिया गेट परिसर में बनाया गया है. यह विभिन्न युद्धों में मारे गए भारतीय सैनिकों की याद में बनाया गया है.
अमर जवान ज्योति के पास 40 एकड़ में फैले इस वॉर मेमोरियल को 176 करोड़ रुपये की लागत से बनाया गया है.
नेशनल वॉर मेमोरियल में अमर जवान ज्योति की तरह ही हर वक्त ज्योति चलती रहेगी.
इसमें 1962 के बाद से अब तक विभिन्न युद्धों में मारे गए 25,942 सैनिकों के नाम दर्ज हैं. इनके नाम मेमोरियल परिसर की 16 दीवारों पर दर्ज किए गए हैं.
इसे महाभारत के चक्रव्यूह के अंदाज़ में चार चक्र में बनाया गया है- अमर चक्र, वीरता चक्र, त्याग चक्र और रक्षक चक्र.
इसके अलावा इस मेमोरियल में राम सुतार के बनाए तांबे की छह म्युरल भी बनाए गए हैं.
स्नेह 15 साल की थी, जब पहली बार उनका सामना माहवारी से हुआ था. उन्हें उस वक़्त समझ नहीं आया कि उनके साथ क्या हो रहा है.
जब मैं उनसे मिलने उनके गांव काठीखेड़ा पहुंची तो उन्होंने मुझे बताया, "मैं बहुत डरी हुई थी. मुझे लगा कि मैं कुछ गंभीर बीमारी की शिकार हो गई हूं और रोने लगी."
"मुझे अपनी मां को बताने की हिम्मत नहीं थी इसलिए मैंने अपनी चाची से बात की. उन्होंने कहाः तुम अब बड़ी हो गई हो, रोओ मत, यह सामान्य बात है. उन्होंने ही इस बारे में मेरी मां बताया."
स्नेह अब 22 साल की हैं और उन्होंने एक लंबा सफर तय किया है. वह अपने गांव की एक छोटी फैक्ट्री में काम करती हैं, जहां सैनेटरी पैड बनाया जाता है और वह अब नायिका बन चुकी हैं.
पीरियडः एंड ऑफ सेन्टेन्स, एक डॉक्यूमेंट्री है, जिसे ऑस्कर में बेस्ट डॉक्यूमेंट्री शॉर्ट सब्जेक्ट कैटेगरी में अवॉर्ड मिला है.
वो फिलहाल ऑस्कर समारोह में हिस्सा लेने लॉस एंजिल्स गई हैं.
ईरानी अमरीकी फ़िल्म निर्माता रायका ज़ेहताब्ज़ी ने यह फ़िल्म तब बनाई जब उत्तरी हॉलीवुड के कुछ छात्रों के एक समूह ने क्राउडफंडिग कर पैड बनाने वाली मशीन स्नेह के गांव से मंगवाई.
दिल्ली से महज 115 किलोमीटर दूर हापुड़ ज़िले का काठीखेड़ा गांव एक ऐसी जगह है जहां शहरी विकास आज भी नहीं पहुंचा है. वहां चकाचौंध बाजार और मॉल देखने को नहीं मिलेंगे.
आम तौर पर यहां दिल्ली से ढाई घंटे की यात्रा के बाद पहुंचा जा सकता है, हालांकि सड़कों की स्थिति ठीक नहीं होने की वजह से यात्रा थोड़ी लंबी हो जाती है.
हापुड़ जिला मुख्यालय से स्नेह का गांव करीब साढ़े सात किलोमीटर भीतर है.
डॉक्यूमेंट्री की शूटिंग खेत-खलिहानों में की गई है. देश के अन्य इलाक़ों की तरह यहां भी माहवारी पर खुल कर बात नहीं करने की परंपरा है.
माहवारी के दौरान महिलाओं को अशुद्ध समझा जाता है और उसे समाजिक आयोजनों से बाहर कर दिया जाता है.
भारतीय समाज में इस मुद्दे पर बात नहीं होने की वजह से स्नेह को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा था. पहली बार माहवारी होने से पहले स्नेह ने इसके बारे में कभी नहीं सुना था.
स्नेह कहती हैं, "यह एक ऐसा विषय था, जिस पर लड़कियों के बीच भी चर्चा नहीं होती थी."
लेकिन चीजें तब बदलने लगीं जब एक्शन इंडिया नाम के एक संस्थान ने महिला स्वास्थ्य के मुद्दों पर काम करना शुरू किया. संस्थान ने काठीखेड़ा में सैनेटरी पैड बनाने के लिए एक छोटी फैक्ट्री भी लगाई.
जनवरी 2017 में एक्शन इंडिया में काम करने वाली स्नेह की पड़ोसी सुमन ने उनसे पूछा कि क्या वो पैड बनाने वाली फैक्ट्री में काम करना चाहेंगी.
स्नेह ने उत्साहित होकर हां में जवाब दिया. ग्रेजुएशन कर चुकी स्नेह दिल्ली पुलिस में नौकरी का सपना देखती हैं. हालांकि गांव में जॉब के मौके कम होने की वजह से उन्होंने एक्शन इंडिया ज्वाइन करने का फ़ैसला किया.
वो अपने पिता को यह बताने में शर्मिंदगी महसूस कर रही थीं कि वो सैनेटरी पैड बनाने जा रही हैं, इसलिए उन्होंने उनसे कहा कि वो बच्चों को डायपर बनाएंगी.
स्नेह हंसते हुए कहती हैं, "नौकरी के दो महीने बाद मेरी मां ने पापा को बताया कि मैं पैड बना रही थी."
उन्हें उस वक़्त राहत महसूस हुई जब उनके पिता ने यह सुन कर कहा, "ठीक है, काम तो काम होता है."
आज इस छोटी फैक्ट्री में सात महिलाएं काम करती हैं. इनकी उम्र 18 से 31 साल तक है. सप्ताह में छह दिन सुबह नौ बजे से शाम पांच बजे तक काम करने के इन्हें 2500 रुपए प्रति महीना मिलता है.
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